Thursday, March 08, 2007

Female Motorcycle Mechanic

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वैसे तो आज महिलाएँ हर वो काम कर रही हैं जो पुरुष करते हैं पर पुरुष प्रधान भारतीय समाज में कुछ ऐसे काम हैं जो आज भी सिर्फ आदमी ही करते नज़र आते हैं.
मिसाल के तौर पर गाड़ियों की मरम्मत का काम.

शायद ही आपका वास्ता कभी महिला मैकेनिक से पड़ा हो और वो भी सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में. पर सौराष्ट्र के सुरेन्द्रनगर ज़िले के चामराज गांव की रत्नाबेन जादव दोपहिया रिपेयरिंग की एक दुकान चला रही हैं.

रत्नाबेन की उम्र 60 वर्ष से ज़्यादा है और उनकी विशेषता मोटरसाइकिल ठीक करना है.

वैसे तो वो हर गाड़ी में पंक्चर लगा लेती हैं. चाहे वो जीप, बस ट्रक या फिर बड़ी गाड़ियाँ.

उनका कहना है “मोटरसाइकिल तो मैं पूरी तरह से ठीक कर लेती हूँ और बाकी गाड़ियों की भी जानकारी रखती हूँ पर मेरे पास उनको ठीक करने के लिए औज़ार नहीं है और ग़रीबी इतनी है कि कोई भी संस्था मुझे लोन नहीं देती.”

महिला शक्ति

रत्नाबेन ने यह काम अपने पति हरिभाई से सीखा.


मुझे गर्व है कि आज मैं यह काम कर रही हूँ, जो कभी सिर्फ़ मर्द करते थे


रत्नाबेन

वो हरिभाई की दूसरी पत्नी हैं और उनकी कोई औलाद नहीं है.

आज हरीभाई बीमारी की वजह से काम नहीं कर सकते तो रत्नाबेन घर चला रही हैं.

हरिभाई अपनी पहली पत्नी से हुए बच्चे के पास जाना नहीं चाहते, जो कि अहमदाबाद रहते हैं.

वो कहते हैं, “बच्चे कहते हैं कि यहाँ आ जाओ पर हम वहाँ जा कर क्या करेंगे. मुझे इसकी चिंता रहती है कि वो इसके साथ कैसा बर्ताव करेंगे. अब तो हम यहीं पर रहना चाहते हैं. यह काम करती है और मैं बैठा रहता हूँ. इसकी वजह से मेरा बुढ़ापा सुधर गया है.”

लेकिन क्या एक महिला का मैकेनिक बन जाना अलग सा नहीं है?

रत्नाबेन कहती हैं “पहले तो लोग मुझे बड़े अचंभे से देखते थे कि आख़िर एक औरत कैसे गाड़ी ठीक करेगी और सवाल पूछते थे. कुछ तो अभी भी पूछते हैं पर मैं उन्हें सामने खाट पर बैठेने को कह कर अपने काम में जुट जाती हूँ.”


पति हरिभाई ने सिखाया काम करना

गांव से गुज़रते हुए किसी की भी गाड़ी ख़राब होती है तो वो उसे रत्नाबेन के पास छोड़ कर अपने काम पर चल देता है और जब तक वो वापस आता है गाड़ी ठीक हो चुकी होती है.

पर लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं? इसी गाँव के जगदीश का कहना है, "इन्हें यह काम करते देख दुख होता है. अगर किसी को ये उम्र में ऐसा करना पड़े तो दुख तो होगा ही ना. मैं इन्हें 20 साल से जानता हूँ."

जगदीश अकसर रत्नाबेन की छोटी मोटी काम में मदद करते हैं. पर रत्नाबेन का मानना है, "मुझे गर्व है कि आज मैं यह काम कर रही हूँ, जो कभी सिर्फ़ मर्द करते थे. मुझे थोड़ा पैसा चाहिए. मुझे धंधे तो आगे बढ़ाना है."

रत्नाबेन आज किसी बडे़ शहर में होती तो काफी ख्याति पा चुकी होती. पर ये ग्रामीण भारत में रह रही एक महिला हैं जो महिला शक्ति को एक अलग परिभाषा दे रही हैं.

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